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आवश्यकचूर्णी
२५३ यह सुनकर मेघ को बहुत क्रोध आया। वह सात रात तक मूसलाधार पानी बरसाता रहा | उसके बाद उसने सोचा कि अब तो पर्वत के होश जरूर ठिकाने आ गये होंगे। लेकिन उधर पहाड़ उज्ज्वल होकर और चमक उठा। यह देखकर महामेघ लजित होकर वहाँ से चला गया ।
(३) किसी नगर में कोई वणिक् रहता था। उसने एक बार शर्त लगाई कि जो माघ महीने की रात में पानी के अन्दर बैठा रहे उसे मैं एक हजार दीनारें दूंगा| एक दरिद्र बनिया इसके लिये तैयार हो गया और वह रात भर पानी में बैठा रहा । वणिक ने पूछा-"तुम रात भर इतनी ठंढ में कैसे बैठे रहे, मरे नहीं ?" उसने उत्तर दिया-"नगर में एक दीपक जल रहा था, उसे देखते हुए मैं पानी में बैठा रहा ।” वणिक ने कहा-"यदि ऐसी बात है तो हजार दीनारें मैं न दूंगा, क्योंकि तुम दीपक के प्रभाव से पानी में बैठे रहे ।" बनिया निराश होकर अपने घर चला आया। उसने घर पहुँच कर सब हाल अपनी लड़की को सुनाया। लड़की ने कहा-"पिता जी ! आप चिन्ता न करें। आप उस वणिक् को उसकी जाति-बिरादरी के लोगों के साथ भोजन के लिये निमन्त्रित करें। भोजन के समय पानी के लोटे को जरा दूर रख कर छोड़ दें, और भोजन करने के पश्चात् जब वह पानी मांगे तो उससे कहें कि देखो यह रहा पानी, इसे देखकर अपनी प्यास बुझा लो। बनिये ने ऐसा ही किया। इस पर वणिक बहुत झेपा और उसे एक हजार दीनरें देनी पड़ी।
(४) किसी सिद्धपुत्र के दो शिष्य थे। एक बार वे नदी के तट पर गये | वहाँ उन्हें एक बुढ़िया मिली | वह पानी का घड़ा लिये जा रही थी। बुढ़िया का लड़का परदेश गया हुआ था । उसने इन लोगों को पण्डित समझ कर अपने लड़के के वापिस लौटने के बारे में प्रश्न किया । इतने में बुढ़िया का