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२३८ प्राकृत साहित्य का इतिहास रहती है। मल्लों में रिवाज था कि यदि कोई अनाथ मल्ल मर जाये तो सब मल्ल मिलकर उसका देह-संस्कार करते थे। आईककुमार के · वृत्तान्त में आईक को म्लेच्छ विषय का रहनेवाला बताया है। आर्य देशवासी श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार से मित्रता करने के लिये आर्द्रक ने उसके लिये भेंट भेजी थी। बौद्धों के जातकों का यहाँ उल्लेख है। वैशिकतन्त्र का निम्नलिखित श्लोक उद्धृत है
एता हसन्ति च रुदन्ति च अर्थहेतोः विश्वासयंति च परं न च विश्वसंति । स्त्रियः कृतार्थाः पुरुषं निरर्थकं निष्पीडितालक्तकवत् त्यति ॥ वीररस की एक गाथा देखियेतरितव्वा च पइण्णिया मरियव्यं वा समरे समत्थएणं । असरिसजणउल्लावया ण हु सहितव्वा कुले पसूएणं॥
गणपालक अथवा गणभुक्ति से राज्यभ्रष्ट होनेवाले को क्षत्रिय कहा गया है । मलूम होता है वैशाली नगरी चूर्णीकार के समय में भुलाई जा चुकी थी, अतएव वैशालिक (वैशाली के रहनेवाले महावीर ) का अर्थ ही बदल गया था
विशाला जननी यस्य विशालं कुलमेव वा ।
विशालं वचनं वास्य, तेन वैशालिको जिनः॥ ___ यहाँ पर दृष्यगणि क्षमाश्रमण के शिष्य भट्टियाचार्य के नामोल्लेखपूर्वक उनके वचन को उद्धृत किया है ।
व्याख्याप्रज्ञप्तिचूर्णी इस पर अतिलघु चूर्णी है जो शीघ्र ही प्रकाशित हो रही है।
जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तिचूर्णी इस ग्रन्थ की चूर्णी देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो रही है।