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बृहत्कल्पभाष्य
२२५ संयती अथवा अन्य संयतियाँ उस पुरुष को धिक्कारती हैं और वह पुरुष अपने मित्र के साथ अपने घर लौट आता है। एक दिन भिक्षा के लिये घर आई हुई उस संयती को देखकर उसके प्रति वह बहुमान प्रदर्शित करता है। वह उसके चरणों का स्पर्श करता है और अपनी पहली पत्नी के बच्चों से उसके पैर पड़वा कर उनसे कहता है कि यह तुम्हारी माँ है, और संयती से कहता है कि देखो यह तुम्हारे बच्चे हैं। तत्पश्चात् यथेच्छ वस्त्र, अन्न-पान आदि से वह उसका सत्कार करता है। __वर्षाकाल में गमन करने से वृक्ष की शाखा आदि का सिर पर गिर जाने, कीचड़ में रपट जाने, नदी में बह जाने अथवा काँटा लग जाने आदि का डर रहता है, इसलिये निग्रंथ और निर्ग्रन्थिनियों को वर्षाकाल में गमन करने का निषेध है।' विरुद्धराज्य में संक्रमण करने से बंध, वध, आदि का डर रहता है। रात्रि अथवा विकाल में भोजन करने से गड्ढे आदि में गिरने, साँप अथवा कुत्ते से काटे जाने, बैल से मारे जाने, अथवा काँटा आदि लग जाने का भय रहता है। इस प्रसंग पर कालोदाई नाम के एक भिक्षु की कथा दी है। यह भिक्षु रात्रि के समय किसी ब्राह्मणी के घर भिक्षा माँगने • गया था। वह ब्राह्मणी गर्भवती थी। अंधेरा होने के कारण ब्राह्मणी को कील न दिखाई दी और कील पर गिर जाने से उसकी मृत्यु हो गई।२ बिहार-मार्ग के लिये उपयोगी तालिका, पुट, वर्ध, कोशक, कृत्ति, सिकन, कापोतिका आदि चर्म के उपकरणों और पिप्पलक, सूची, आरी, नखरदन आदि लोहे के
१. विशेषकर उत्तर बिहार में वागमती, कोसी और गंडक नदियों में बाढ़ आ जाने के कारण आवागमन विलकुल ठप्प हो जाता है, इसीको ध्यान में रखकर भिक्षुओं के लिये चातुर्मास में गमनागमन करने का निषेध किया मालूम होता है।
२. मज्झिमनिकाय के लकुटिकोपम सुत्त में भी स्त्री के गर्भपात की बात कही गई है।
१५ प्रा० सा०