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प्राकृत साहित्य का इतिहास लगता है कि संभवतः नन्दी के बाद में आवश्यकनियुक्ति की रचना हुई।
दशवकालिकनियुक्ति दशवैकालिक के ऊपर भद्रबाहु ने ३७१ गाथाओं में नियुक्ति लिखी है। इसमें अनेक लौकिक और धार्मिक कथानकों तथा सूक्तियों द्वारा सूत्रार्थ का स्पष्टीकरण किया गया है। हिंगुशिव, गंधर्विका, सुभद्रा, मृगावती, नलदाम और गोविन्दवाचक आदि की अनेक कथायें यहाँ वर्णित हैं। जैसे कहा जा चुका है, इन कथाओं का प्रायः नामोल्लेख ही नियुक्ति गाथाओं में उपलब्ध होता है, इन्हें विस्तार से समझने के लिये चूर्णी अथवा टीका की शरण लेना आवश्यक है। गोविन्दवाचक बौद्ध थे; ज्ञानप्राप्ति के लिये उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की, आगे चल कर वे महावादी हुए। कूणिक ( अजातशत्रु) गौतमस्वामी से प्रश्न करते हैं कि चक्रवर्ती मर कर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में कहा गयासातवें नरक में। कूणिक ने फिर पूछा-मैं मर कर कहाँ जाऊँगा ? गौतम स्वामी ने उत्तर दिया-छठे नरक में | प्रश्नोत्तर के रूप में कहीं तार्किकशैली में तत्त्वचर्चा की झलक भी दिखाई दे जाती है । शिष्य ने शंका की कि गृहस्थ लोग क्यों न साधुओं . के लिये भोजन बना कर रख दें। गुरू ने इसका निषेध किया
वासइ न तणस्स कए न तणं वड्ढइ कए मयकुलाणं । न य रुक्खा सयसाला ( ? खा) फुल्लन्ति कए महुयराणं॥
-तृणों के लिये पानी नहीं बरसता, मृगों के लिये तृण नहीं बड़े होते, और इसी प्रकार सौ शाखाओं वाले वृक्ष भौरों के लिये पुष्पित नहीं होते । (इसी तरह गृहस्थों को साधुओं के लिये आहार आदि नहीं बनाना चाहिये)।
... १. प्रोफेसर लायमन ने इसका सम्पादन कर इसे ज़ेड० डी० एम० जी० (जिल्द ४६, पृष्ठ ५८१-६६३ ) में प्रकाशित किया है।