________________
२०६ प्राकृत साहित्य का इतिहास णमोकार मंत्र को सर्व पापों का नाशक कहा है
अरिहंतनमक्कारो सव्वपावपणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढइ हवइ मंगलं ॥ योग्य-अयोग्य शिष्य का लक्षण समझाने के लिये गाय, चन्दन की भेरी, चेटी, श्रावक, बधिर, गोह और टंकण देश के वासी म्लेच्छ वणिकों आदि के दृष्टांत दिये गये हैं। तत्पश्चात् कुलकरों के पूर्वभव आदि का वर्णन है। ऋषभदेव का चरित विस्तार से कहा गया है। २४ तीर्थंकरों ने जिन नगरों में उपवास के पश्चात् पारणा किया उनका उल्लेख है। ऋषभदेव के बहली, अंबड और इल्ला (?) आदि यवन देशों में विहार करने का उल्लेख है। तीर्थंकरों के गोत्रों और जन्मभूमि आदि का कंथन है। महावीर के गर्भहरण से लेकर उनके निर्वाण तक की मुख्य घटनाओं का उल्लेख है। उनके उपसों का विस्तार से वर्णन है। गणधरवाद में ग्यारह गणधरों की जन्मभूमि, गोत्र, उनकी प्रव्रज्या और केवलज्ञान प्राप्ति का उल्लेख है। आर्यवन (बइररिसि) और आर्यरक्षित के वृत्तान्त तथा निह्नवों के स्वरूप का प्रतिपादन है। आर्यवन पदानुसारी थे, और उन्होंने महापरिज्ञा अध्ययन से आकाशगामिनी विद्या का उद्धार किया था। सामायिक आदि का स्पष्टीकरण करने के लिये दमदंत, . मेतार्य, कालक, चिलातीपुत्र, आत्रेय, धर्मरुचि, इलापुत्र और तेतलिपुत्र के उदाहरण दिये हैं । औत्पातिक, वैनयिक, कार्मिक
और पारिणामिक इन चार प्रकार की बुद्धियों के अनेक मनोरंजक उदाहरण दिये हैं। रोहक की प्रत्युत्पन्नमति का कौशल दिखाने के लिये शिला, मेंढा, कुक्कुट, तिल, बालू की रस्सी, हाथी, कूप, वनखंड, पायस (खीर ) आदि के उदाहरण दिये हैं जिनमें अनेक बुद्धिवर्धक पहेलियाँ और लौकिक कथा
१. महाउम्मग जातक में यहाँ की अनेक कथायें महोसधपंडित के नाम से उल्लिखित हैं। इन कहानियों के हिन्दी अनुवाद के लिए देखिए जगदीशचन्द्र जैन, दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ ।