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प्राकृत साहित्य का इतिहास निम्नलिखित दस भेद बताये हैं-आलोचना, प्रतिक्रमण, मिश्र (आलोचना और प्रतिक्रमण), विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, अनवस्थाप्य, पारंचिक | फिर प्रत्येक प्रायश्चित्तविधि का विधान किया है । भद्रबाहु के पश्चात् अन्तिम दो प्रायश्चित्तों का व्युच्छेद बताया गया है।
यतिजीतकल्प और श्राद्धजीतकल्प भी जीतकल्प के ही अन्दर गिने जाते हैं । यतिजीतकल्प में यतियों का आचार है। इसके कर्ता सोमप्रभसूरि हैं, इस पर साधुरत्न ने वृत्ति लिखी है। श्राद्धजीतकल्प में श्रावकों का आचार है। इसके रचयिता धर्मघोष हैं, सोमतिलक ने इस पर वृत्ति लिखी है ।
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