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ववहार उल्लेख मिलता है। कीमिया बनाने का उल्लेख भी पाया जाता है।
ववहार ( व्यवहार) व्यवहारसूत्र को द्वादशांग का नवनीत कहा गया है। तीन मुख्य छेदसूत्रों में इसकी गिनती है,' शेष दो हैं निशीथ
और बृहत्कल्प | इसके कर्ता श्रुतकेवली भद्रबाहु हैं जिन्होंने इस सूत्र पर नियुक्ति भी लिखी है। व्यवहारसूत्र के ऊपर भाष्य भी है, लेकिन उसके कर्ता का नाम अज्ञात है। नियुक्ति और भाष्य की गाथायें परस्पर मिल गई हैं। भाष्यकार ने व्यवहारसूत्रों पर भाष्य लिखने में अपनी असमर्थता प्रकट की है। मलयगिरि ने भाष्य पर विवरण लिखा है। व्यवहारसूत्र पर बृहद्भाष्य भी था जो अनुपलब्ध है। इसकी चूर्णी मिलती है जो प्रकाशित नहीं हुई । व्यवहारभाष्य पर अवचूरि भी लिखी गई है।
व्यवहारसूत्र निशीथ की अपेक्षा छोटा और बृहत्कल्प की अपेक्षा बड़ा है। इसमें दस उद्देशक हैं । पहले उद्देशक में ३४ सूत्र हैं । आरंभ में बताया है कि प्रमाद के कारण अथवा अनजाने में यदि भिक्षु दोष का भागी हो जाये तो उसे आलोचना करनी चाहिये, आचार्य उसे प्रायश्चित्त देते हैं। यदि कोई साधु गण को छोड़ कर अकेला विहार करे और फिर उसी गण में लौटकर आना चाहे तो उसे आचार्य, उपाध्याय आदि के समक्ष अपनी आलोचना, निन्दा, गर्दा आदि करके विशुद्धि प्राप्त करनी चाहिये । यदि कोई भी न मिले तो ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, खेड, कर्बट, मडंब, पट्टण, द्रोणमुख आदि की पूर्व
१. यह ग्रन्थ भाष्य और मलयगिरि की टीकासहित सन् १९२६ में भावनगर से प्रकाशित हुआ है । कल्प, व्यवहार और निशीथ ये तीनों सूत्र वाल्टेर शूनिंग द्वारा संपादित होकर अहमदाबाद से प्रकाशित