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१३२ प्राकृत साहित्य का इतिहास इसकी रचना की है। इस प्रन्थ पर श्रीचन्द्रसूरि, यशोदेव आदि आचार्यों ने वृत्ति, अवचूरि, और दीपिका की रचना की है। :
तिथिप्रकीर्णक कोई तिथिप्रकीर्णक की भी गिनती प्रकीर्णकों में करते हैं।
सारावलि इसमें ११६ गाथायें हैं । आरंभ में पंच परमेष्ठियों की स्तुति है।
पज्जंताराहणा (पर्यंताराधना ) इसे आराधनाप्रकरण या आराधनासूत्र भी कहते हैं। इसमें ६६ गाथायें हैं।' इसके कर्ता सोमसूरि हैं। इसमें अन्तिम आराधना का स्वरूप समझाया गया है।
जीवविभक्ति इसमें २५ गाथायें हैं । इसके कर्ता जिनचन्द्र हैं ।
कवचप्रकरण इसके कर्ता जिनेश्वरसूरि के शिष्य नवांग-वृत्तिकार अभयदेवसूरि के गुरु जिनचन्द्रसूरि थे। इसमें १२३ गाथायें हैं ।
जोणिपाहुड इसके सम्बन्ध में इस पुस्तक के अन्तिम अध्याय में लिखा जायेगा।
कोई अंगचूलिया, वंगचूलिया ( वगचूलिया) और जंबुपयन्ना को भी प्रकीर्णकों में गिनते हैं।
१. अवचूरि और गुजराती अनुवाद सहित श्रीबुद्धि वृद्धि कर्पूरग्रंथमाला की ओर से वि० सं० १९९४ में प्रकाशित ।