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________________ १२९ . तित्थोगालियपयन्नु मरणसमाधि की रचना की गई है। आरम्भ में शिष्य प्रश्न करता है कि समाधिपूर्वक मरण किस प्रकार होता है ? इसके उत्तर में आराधना, आराधक, तथा आलोचना, संलेखना, क्षामणा, काल, उत्सर्ग, अवकाश, संस्तारक, निसर्ग, वैराग्य, मोक्ष, ध्यानविशेष, लेश्या, सम्यक्त्व और पादोपगमन इन चौदह द्वारों का विवेचन किया है। आचार्य के गुणों आदि का प्रतिपादन है। अनशन तप का लक्षण और ज्ञान की महिमा बताई गई है। यहाँ संलेखना की विधि और पंडितमरण आदि का विवेचन है। धर्म का उपदेश देने के लिये अनेक श्रेष्ठी आदि के दृष्टान्त दिये हैं । परीषह-सहन कर पादोपगमन आदि तप के द्वारा सिद्धगति पानेवालों के दृष्टांत उल्लिखित हैं । अंत में बारह भावनाओं का विवेचन है । ___उक्त दस प्रकीर्णकों के अतिरिक्त और भी अनेक प्रकीर्णकों की रचना हुई। इसमें ऋषिभाषित, तीर्थोद्गार (तित्थुग्गालिय), अजीवकल्प, सिद्धपाहुड, . आराधनापताका, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, ज्योतिषकरंडक, अंगविद्या, योनिप्राभृत आदि मुख्य हैं । तित्थोगालियपयन्नु ( तीर्थोद्गार ) यह ग्रन्थ श्रुत से उद्धृत किया गया है, इसमें १२३३ गाथायें हैं । इसकी विक्रम संवत् १४५२ की लिखी हुई एक ताड़पत्र की प्रति पाटण के भंडार में मौजूद है। इसमें पाटलिपुत्र की वाचना का विस्तृत वर्णन है । यहाँ कहा गया है कि पालक के ६०, नन्दों के १५०, मौर्यों के १६०, पुष्यमित्र के ३५, बलमित्र-भानुमित्र के ६०, नहसेण के ४० और गर्दभिल्ल के १०० वर्ष समाप्त होने पर शक राजाओं का राज्य स्थापित हुआ। इस ग्रन्थ में वलभी नगर के भंग होने का उल्लेख मिलता है। मुनि कल्याणविजय १. जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स, मुम्बई द्वारा वि० सं० १९६५ में प्रकाशित जैनग्रन्थावलि में पृष्ठ ७२ पर प्रकीर्णकों की तीन भिन्न-भिन्न सूचियां दी हुई हैं। २. मेरुतुङ्ग के प्रबन्धचिंतामणि (पृ० १०९) के अनुसार विक्रम काल के ३७५ वर्ष बाद वलभी का भंग हुआ। प्रभावकचरित (पृष्टं ९प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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