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कप्पवडंसिया
१२१ कप्पवडंसिया ( कल्पावतंसिका ) कल्पावतंसिका ( कल्पावतंस अर्थात् विमानवासी देव) में दस अध्ययन हैं। इनमें राजा श्रेणिक के दस पौत्रों का वर्णन है ।
पुफिया (पुष्पिका) पुष्पिका में भी दस अध्ययन हैं। पहले और दूसरे अध्ययनों में चन्द्र और सूर्य का वर्णन है। तीसरे अध्ययन में सोमिल ब्राह्मण की कथा है। इस ब्राह्मण ने वानप्रस्थ तपस्वियों की दीक्षा ग्रहण की थी। वह दिशाओं का पूजक था तथा भुजायें ऊपर उठाकर सूर्याभिमुख हो तप किया करता था। चौथे अध्ययन में सुभद्रा नाम की आर्यिका की कथा है। संतान न होने के कारण सुभद्रा अत्यंत दुखी रहती। उसने सुव्रता के पास श्रमणदीक्षा ग्रहण कर ली । लेकिन आर्यिका होकर भी सुभद्रा बालकों से बहुत स्नेह करती थी। कभी वह उनका श्रृंगार करती, कभी गोदी में बैठाकर उन्हें खिलाती-पिलाती और उनसे क्रीड़ा किया करती थी। उसे बहुत समझाया गया लेकिन वह न मानी। दसरे जन्म में वह किसी ब्राह्मण के कल में उत्पन्न हुई और बच्चों के मारे उसकी नाक में दम हो गया।' वह अपने बालों में भोजन छिपा कर ले जाने लगी, बाद में उसने अपने शरीर पर सुगंधित जल लगाना शुरू किया जिसे चाटकर राजा अपनी क्षुधा शान्त कर लेता था। अजातशत्रु को जब इस बात का पता लगा तो उसने अपनी माता का मिलना बन्द कर दिया। अजातशत्रु ने गुस्से में आकर राजा के पैरों को काट कर उसे तेल और नमक में तलवाया जिससे राजा की मृत्यु हो गई। इतने में अजातशत्रु को पुत्रजन्म का समाचार मिला। वह अपने पिता को तापनगेह से मुक्त करना चाहता था, लेकिन उसके तो प्राणों का अन्त हो चुका था ! वही, पृष्ठ १३५ इत्यादि।
१. स्थानांगसूत्र के अनुसार इस अध्ययन में प्रभावती का वर्णन होना चाहिये था।