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दस प्रकीर्णक चउसरण पाउरपञ्चक्खांण महापच्चक्खाण भत्तपरिणय तन्दुलवेयालिय संथारग गच्छायार गणिविज्जा देविदथय मरणसमाही तित्योगालियपयन्नु . अजीवकल्प सिद्धपाहुड
आराधनापताका द्वीपसागरप्रज्ञप्ति जोइसकरंडग अंगविज्जा पिंडविसोहि तिथिप्रकीर्णक सारावलि पज्जंताराहणा जीवविभक्ति कवचप्रकरण
१२३-१२६ | पंचकप्प
१६१ जीयकप्पसुत्त १२४ । मूलसूत्र
१६३-१८ " उत्तरज्मयण
१६३ श्रावस्सय
१७२ १२५ दसवेयालिय १२७ पिंडनिज्जुत्ति
१८० ओहनिज्जुत्ति
१८२ पक्खियसुत्त
१८६ खामणासुत्त वंदित्तुसुत्त
१८७ इसिभासिय १३० नन्दी और अनुयोगदार १८८-१६२ नन्दी
१८८ अनुयोगद्वार
१९० १३१ तीसरा अध्याय , आगमों का व्याख्या साहित्य
(ईसवीसन की दूसरी शताब्दी से ईसवी सन् की १६वीं
शताब्दी तक) १६३-२६८ निज्जुत्ति-भास-चुण्णि-टीका १९३-१९९ नियुक्ति-साहित्य १६६-२१० आचारांगनियुक्ति
१९९ सूत्रकृतांगनियुक्ति
२०१ सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति
२०२ १३३-१६२
बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ१३४ नियुक्ति .१४६ दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति १४९ उत्तराध्ययननियुक्ति १५४ आवश्यकनियुक्ति
२०४ १५७ । दशवैकालिकनियुक्ति
जोणिपाहुड .
अंगचूलिया आदि
छेदसूत्र
.२०३
निसीह महानिसीह . ववहार दससुयक्खंध कप्प अथवा बृहत्कल्प