________________
पन्नवणा
की लघुवृत्ति लिखी है।' उसी के आधार पर मलयगिरि ने प्रस्तुत टीका लिखी है। कुलमंडन ने इस पर अवचूरि की रचना की है। यहाँ पर भी अनेक पाठभेदों का उल्लेख है। टीकाकार ने बहुत से शब्दों की व्याख्या न करके उन्हें 'सम्प्रदायगम्य' कहकर छोड़ दिया है । पहले पद में पृथिवी, जल, अग्नि, वायु तथा वृक्ष, बीज, गुच्छ, लता, तृण, कमल, कंद, मूल, मगर, मत्स्य, सर्प, पशु, पक्षी आदि का वर्णन है। अनार्यों में शक, यवन, किरात, शबर, बर्बर आदि म्लेच्छ जातियों का उल्लेख है। आर्य क्षेत्रों में २५३ ३ देशों का ; जाति-आर्यों में अंबष्ठ, विदेह
___१. ऋषभदेव केशरीमल संस्था की ओर से सन् १९४७ में रतलाम से प्रकाशित ।
२. यहाँ सूत्र ३३ में साह, खवल्ल (आधुनिक केवइ), जंग, (झिंगा), विज्झडिय, हलि, मगरि (मंगूरी), रोहिय (रोहू), हलीसागरा, गागरा, वडा, वडगरा (बुल्ला), गब्भया, उसगारा, तिमितिमिगिला (बरारी), णका, तंदुला, कणिका (कनई ), सालिसस्थिया, लंभण, पडागा और पडागाइपडागा मछलियों के नाम दिये हैं। मच्छखल का उल्लेख आचारांग (२, १, १, ४) में मिलता है। इसे धूप में सुखाकर भोज आदि के अवसर पर काम में लेते थे । उत्तराध्ययन ( १९.६४) तथा विपाकसूत्र (6, पृष्ठ ४७) में मछली पकड़ने के अनेक प्रकारों का उल्लेख है । अंगविजा (अध्याय ५०, पृष्ठ २२८) भी देखिये । धनपाल ने पाइअलच्छीनाममाला (६०) में सउला (सउरी), सहरा, मीणा, तिमी, झसा और अणमिसा का उल्लेख किया है। खासकर उत्तर बिहार में मछलियों की सैकड़ों किस्में पाई जाती हैं जिनमें रोहू, बरारी, नैनी, भकुरा, पटया आदि मुख्य हैं।
३. मगध ( राजगृह), २ अंग (चम्पा), ३ वंग (ताम्रलिप्ति), ४ कलिंग (कांचनपुर), ५ काशी (वाराणसी), ६ कोशल (साकेत), ७ कुरु (गजपुर), ८ कुशावर्त (शौरिपुर ), ९ पांचाल (कांपिल्यपुर), १० जांगल (अहिच्छत्रा), ११ सौराष्ट्र (द्वारवती), १२ विदेह (मिथिला),
८प्रा०सा०