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विवागसुय नाम का एक गड़रिया (छागलिय) था | माता-पिता की मृत्यु हो जाने पर राजपुरुषों ने उसे घर से निकाल दिया और उसका घर दूसरों को दे दिया। सगड़ एक अवारे का जीवन बिताने लगा । सुसेण मंत्री ने उसे प्राणदण्ड की आज्ञा दी । ___ पाँचवें अध्ययन में बहस्सइदत्त की कथा है। बहस्सइदत्त कौशांबी के सोमदत्त पुरोहित का पुत्र था। पूर्वभव में वह महेश्वरदत्त नाम का पुरोहित था जो राजा की बल-वृद्धि के लिये ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के बालकों को मारकर शान्तिहोम करता था | महेश्वरदत्त को राजा के अन्तःपुर में आने-जाने की छूट थी। किसी समय रानी से उसका सम्बन्ध हो गया । दुश्चरित्र का पता लगने पर राजा ने उसके वध की आज्ञा दी। ___ छठे अध्ययन में नन्दिवद्धण की कथा है । वह श्रीदाम राजा का पुत्र था | पूर्वभव में वह राजा का चारगपालय (जेलर) था। जेल में चोर, परदारसेवी, गँठकतरे, राजापकारी, कर्जदार, बालघातक, जुआरी आदि बहुत से लोग रहते थे । वह उन्हें अनेक प्रकार की यातनायें दिया करता था। नन्दिवद्धण अपने पिता को मारकर स्वयं राज-सिंहासन पर बैठना चाहता था । उसने किसी नाई (अलंकारिय) के साथ मिलकर एक षड्यंत्र रचा। पता लग जाने पर नन्दिवद्धण को प्राणदण्ड की
आज्ञा दी गई। ___ सातवें अध्ययन में उम्बरदत्त की कथा है। वह सागरदत्त सार्थवाह का पुत्र था | पूर्वभव में वह अष्टांग आयुर्वेद में कुशल एक सुप्रसिद्ध वैद्य था । रोगियों को मत्स्य-मांस के भक्षण का उपदेश देता हुआ वह उनकी चिकित्सा करता था | अनेक रोगों से पीड़ित हो उसने प्राणों का त्याग किया।
आठवें अध्ययन में सोरियदत्त की कथा है। सोरियदत्त समुद्रदत्त नाम के एक मछुए का पुत्र था । पूर्वभव में वह किसी राजा के घर रसोइये का काम करता था । वह अनेक पशु-पक्षी और मत्स्य आदि का स्वादिष्ट मांस तैयार करता और राजा को
७प्रा० सा० .