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________________ ज्ञान कैसे प्राप्त करे ? [ ६१ / श्रादरपूर्वक ही सुने-समझे । इतना ही नहीं वल्कि वह भूल करता हो तो घर की कामवाली दासी अथवा साधारण गृहस्थ भी उसको सुधारे तो क्रोध किये बिना उसके अनुसार करे क्योंकि वन में मार्ग न जानने वाले को कोई मार्ग बतला दे तो उसमें उसका कल्याण ही है । धर्म के सम्बन्ध में दृढ न हुआ शिष्य प्रारम्भ में धर्म को नहीं जान सकता परन्तु जिन भगवान् के उपदेश से समझ पड़ने के बाद सूर्योदय पर आंखों से मार्ग दिखता है, वैसे ही वह धर्म को जान सकता है। [ ६-१३ ] योग्य समय पर शिष्य गुरु से अपनी शंकाएँ पूछे और वह जो बतलावे, उसको केवली का मार्ग जान कर अपने हृदय में स्थापित करे । इस मार्ग में पूर्ण रीति से स्थिर और अपनी तथा दूसरों की ( हिंसा और पाप से ) रक्षा करने वाले गुरुत्रों के पास ही शंकाओं का योग्य समाधान हो सकता है। ऐसे त्रिलोकदर्शी मनुष्य ही धर्म को इस प्रकार कह सकते हैं कि फिर शिष्य को 'शंका नहीं होती । स्थान, शयन, ग्रासन और पराक्रम के सम्बन्ध में योग्य आचरण और शुभाशुभ में विवेकपूर्ण गुरु भी शिखाते समय प्रत्येक बात को खोल खोल कर समझावे | [१५-६५] ऐसे गुरु के पास से इच्छित ज्ञान सीखने वाला शिष्य ही प्रति - भावान् और कुशल होता है। ऐसा शिष्य शुद्ध मार्ग को प्राप्त करके, मोक्ष की इच्छा रख कर, सब सस्थावर जीवों के प्रति श्रप्रमादी और द्वेपरहित बनता है और तप और मौन का आचरण करता हुआ मोक्ष को प्राप्त होता है । [१७] गुरु के पास धर्म को बरावर समझ कर, उसका रहस्य जान कर और उसको बराबर समझने के योग्य हो कर शिष्य दूसरों को उपदेश देने जावे और अच्छे-बुरे का विवेक रखकर गुरु के वचन की
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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