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सत्र कृतांग सूत्र
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वे छोटे-बड़े सब प्राणियों को और सारे जगत् को अपने समान समझते हैं। वे स्वयं किसी की हिंसा करते नहीं और दूसरे से कराते भी नहीं है। सर्व काल में जितेन्द्रिय रहकर और मोक्षमार्ग के लिये तत्पर होकर वे वीरपद को प्राप्त किये होते । हैं। इस महा गहन संसार में वे ही केवल जागृत रहते हैं। . उनको शब्द, रूप, रस, गन्ध आदि विषयों में राग या द्वेष नहीं होता वैसे ही जीवन या मरण की भी इच्छा नहीं होती। संयम से । सुरक्षित वे मनुष्य, स्वयं ही अथवा अन्य किसी के पास से सत्य जानकर, इस संसार से मुक्त होते हैं। वे ही क्रियावाद का उपदेश देने तथा दूसरे को संसार समुद्र से बचाने में समर्थ होते हैं। [१७-८; २१-२]] --ऐसा श्री सुधर्मास्वामी ने कहा ।