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सूत्र कृतांग सूत्र
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को याद न करे; धर्म से निपिद्ध कोई बात न कहे; बोलने लगे तो लगातार बोलता ही न रहे; किसी का हृदय दुःखी हो ऐसा वचन कहने की इच्छा तक न करे; दूसरे ठगे जावे ऐसा कुछ न कहे; उसे तो विचार करके ही बोलने की आदत डालनी चाहिये । . उसे आधी सच्ची आधी झूठी (सत्यासत्य) भाषा को त्याग देना चाहिये और दूसरों की गुप्त बात नहीं कहना चाहिये। किसी को 'ऐ' 'रे' श्रादि कहकर न पुकारे; 'यार' 'दोस्त' या गोत्रका नाम लेकर न पुकारे; ऐसे काम कभी न करे। [ १७, २१, २५-७ ] __इस प्रकार निरर्थक प्रवृत्ति में पड़े बिना, और उसी प्रकार सुन्दर पदार्थो की इच्छा रखे विना, प्रयत्नशील रहकर बिना प्रमाद के विचरे
और ऐसा करने में जो भी दुःख पावें, सहन करे। कोई मारे तो क्रोध न करे; गालियां दे तो नाराज न हो परन्तु प्रसन्न रहते हुए सब सहन करके शांति धारण करे । [३०-१]
-ऐसा श्री सुधर्मास्वामी ने कहा ।
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