________________
arurnal.
.....
.
.
.
....
.vN..
..........
.....Vvvvv v
vv.in.vhy.
- सच्ची-वीरता
।
-
-
-
वह प्राणों की हिंसा नहीं करता; चोरी नहीं करता; विश्वासघात नहीं करता असत्य नहीं बोलता; धर्म का उल्लंघन मन-वचन से नहीं चाहता तथा जितेन्द्रिय होकर श्रात्मा की सब प्रकार से रक्षा करता हुया विचरता है। वह क्षमावान् और निरातुर होकर सदा प्रयानशील रहता है, और सब प्रकार की पापवृत्तियों का त्याग करके, सहनशीलता को परमधर्म मानकर ध्यान योग को साधता हुआ मोक्ष पर्यंत विचरता है। [.१६-२१,२५-६] - इस प्रकार, ज्ञानी और अज्ञानी दोनों ही समान वीरता को
दिखाते हुए भी; अधूरे ज्ञानी और सर्वथा अज्ञानी का चाहे जितना । - पराक्रम हो पर वह अशुद्ध है और कर्भ-बन्धन का कारण है; परन्तु
ज्ञान और बोध से सहित मनुष्य का पराक्रम शुद्ध है और उसे उसका कुछ फल भोगना नहीं पड़ता।
__योग्य रीति से किया हुआ तप भी, यदि कीर्ति की इच्छा से
किया गया हो तो शुद्ध नहीं होता। जिस तप को दूसरे नहीं जानते, .. वह सच्चा तप है। [ २२-२४] .. ......
-ऐसा श्री सुधस्विामी ने कहा।