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घास विछाकर उपाय नहीं ढूंढना चाहिये को जीतना ही है। इतना होनेपर ही वह से, एकाग्रतापूर्वक स्थिर होकर ध्यानादि कर के बाद जहां का तहां निवास करने का सकता है ।
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सूत्रकृतांग सूत्र
क्योंकि उसे तो इन भयों निर्जन स्थानों में शांति सकता है अथवा सूर्यास्त यति-धर्म पालन कर,
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जब तक वह एकान्त में निर्भयतापूर्वक नहीं रह सकता । तव तक वह ग्राबादी या संगति में रहने का प्रयत्न करता है । साधु के लिये संगति के समान खतरनाक कोई वस्तु नहीं । मनुष्य चारित्र और संयम का पालन भी दूसरी रीति से करता हो पर यदि संगति के दोषों का त्याग न करे तो वह तथागत बन जाने पर भी समाधि से च्युत हो जाता है। कारण यह कि संगति कलह, ग्रासक्ति तथा पूर्व के भोगों की स्मृति का कारण होती है । इस लिये, बुद्धिमान् भिक्षु संसर्ग से दूर रहे तथा जीवन को क्षणभंगुर जान कर, दूर करके, मोह-माया से रहित होकर, स्वच्छन्द करना छोडकर, शीत-उष्ण आदि हुन्छ सहन करके; बताए हुए धर्म का अनुसरण करे । [ १२ - २२]
संसारियों के सर्व प्रकार से प्रमाद
रूप से अनुसरण ज्ञानी पुरुषों द्वारा
ज्यादा क्या कहा जाय ? चतुर जुआरी जैसे खोटे दाव ( कलि, त्रेता और द्वापर के पासे ) छोडकर श्रेष्ठ दाव (कृत का ) लेता है, उसी प्रकार तुम भी स्त्री-संगादि ग्राम-धर्म तथा उपभुक्त विषयों की कामना छोड दो और संसार के उद्धारक संतपुरुषों के बताए हुए सर्वोत्तम धर्म मार्ग का अनुकरण करने लगो । जो मन को दूषित करने वाले विषयों में डूबे हुए नहीं हैं, वे ही का अनुसरण करने के लिये समर्थ हैं । इस
सन्त पुरुषों के मर्ग लिये, तुम मन के