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________________ कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरेभ्यो नमः ।। प्रकाशकीय निवेदन दुलभ मानव जीवनको सफल बनाने के लिये धर्मतत्व की पहचान करनी पड़ेगी । जैन धर्म की पहचान जैनागम के सिवाय. नहीं हो सकती । उन जैनागम का श्रवण करने से मौलिक तत्वों की पहचान होती है। कठिन में कठिन तत्व को सरल रीत से समझाने की कला जिन ने हस्तगत की है, वे परम उपकारी समकित धर्मदाता प्रातः वंदनीय पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय भुवन सूरीश्वरजी महाराज का व्याख्यान सुनना वह मानव जीवन का एक ल्हावा (लाभ) है । ... तत्वों के बीच बीच में बोधदायक कथानक इस तरह से रखते. हैं कि जन हृदय का आकर्षण हुये विना नहीं रहेगा। नास्तिकों को समझाने के लिये सचोट दलीलें करते हैं। वैराग्य रस और हास्य रस ऊपर पूज्य श्री एसी देशना देते हैं कि देशना सुनने के लिये चाल दिवसों में भी मानो पयूषण पर्व की सभा देखलो। . पूज्य श्री जहां जहां चातुर्मास करते हैं, वहां के आवाल वृद्ध . . एसा वोलते सुने गये हैं कि पूज्य श्री का शक्तिशाली प्रभाव होने से धार्मिक कार्य बड़े प्रमाण में होते हैं। . . .. पूज्य श्री की देशना से आकर्षा के जैनेतर विद्वान भी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। पूज्य श्री के जाहिर प्रवचन उपाश्रय में, पंचायती
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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