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________________ २४ प्रवंचनसार कर्णिका - - वाग्भट्ट मन्त्री, शत्रुजय का उद्धार करने के लिये पालीताणा आते हैं। इनको किसीने बुलाया नहीं था। किन्तु आनेकी खबर मिलते ही सब व्यापारी इकट्ठे हो गये'.. और मन्त्रीश्वर को विनंती करते हैं कि हमको भी लाभ मिलना चाहिये । सभीको लाम देने की योजना तैयार की गई । इस बातकी खबर भीमाशेठ को हुई। वह पहले तो सुखी थे किन्तु अन्तराय कर्मके उदयले पीछे से धनविहीन हो गये। फिर भी उनमें श्रद्धा और समता अजीव ही थी। फटे हुए कपड़े पहनकर वे भी वहाँ आते हैं । वाग्भट्ट . सन्त्री की नजर भीमा पर पड़ी और आकृति के ऊपर से .. भीमा उनको भावनाशील मालूम हुआ । भीमा शेठ को आगे बुलाकर के मन्त्रीश्वर पूछते हैं कि शेठ क्या भावना है? हां महाराज! ज्यादा तो नहीं किन्तु मेरे घरकी सर्वस्व . सूडीरूप ये सात द्रमक हैं, उनको लेने की कृपा करो। इस .. प्रकार भीमा शेठने वाग्भट्ट से विनती की । मन्त्री वह . स्वीकार करते हैं और सबसे पहला खाता (चौपडा) में: । भीमा शेठका नाम लिखाते हैं, इससे दूसरे शेठोंको दुःख होता है तव सन्त्रीश्वर उनको समझाते हैं कि देखो, .. अपनने अपनी मूडीमें से एकसौवाँ भाग भी नहीं दिया किन्तु भीमाशेठने तो उनकी सभी पूँजी दे दी। इस वातसे सभी समझ गये । अव मन्त्रीश्वर भीमा शेठको उपहार में एक हार देने लगते हैं, परन्तु वह भीमा शेठ स्वीकार नहीं करते और बोले कि दान तो मैंने देने के लिये किया है लेने के लिये नहीं। इधर घरमें उनकी पत्नी कलहप्रिय थी, इसलिये भीमा शेठ विचार करते हैं कि आज में खाली हाथ घर जाऊँगा तो जरूर झगड़ा होगा, लेकिन क्या हो सकता है। दानका एसा सुवर्ण अवसर फिर नहीं मिलने
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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