________________
- -
-
व्याख्यान-वत्तीसवाँ
४२३ इस शरीरमें से प्रतिसमय असंख्यात पुद्गल निकलते हैं और घुसते हैं। ...... ज्ञानी पुरुषों के गुण गाने से अपने दोष नाश होते हैं . और अपने को गुणप्राप्ति होती है। . देव और गुरु अपने लिए सेव्य और अपन उनके सेवको सेवा करे वह सेवक । .
जिन मन्दिरों में प्रवेश करते समय (१) पान खाना (२) पानी पीना (३) भोजन करना (8) जूता पहनना (५) ' मैथुन करना (६) सोना (७) थूकना (८-९) लघुनीति और बड़ीनीति करना (१०) जुआ खेलना ये दश बड़ी अशातना का जिनमन्दिर में त्याग करना चाहिये
इनके सिवाय दूसरी अशातना का भी त्याग करना चाहिए। वे अशातना नीचे मुजव हैं । - ज्ञान दर्शन और चरित्र के लाभका जिससे नाश हो उसे अशातना कहते हैं।
८४ अशातना-. ..
(१) पान सोपारी खाना (२) पानी पीना (३) भोजन करना (४) जूता पहनके अन्दर जाना (५) मैथुन सेवन करना (६) विस्तर विछाके लोना (७) थूकना तथा गलफा (गले का मैल) डालना (८). पेशाव करना (९) टट्टी जाना (१०) जुआ खेलना (११) अनेक प्रकार की क्रीड़ा करना (खणना वगैरह) (१२) कोलाहल करना (१३) धनुर्वेदादि कला का अभ्यास करना (१४) कुल्ला करना (१५) गाली देना (१६) शरीर धोना (१७) बाल कटाना उतारना (१८) लोही डालना (१९) मिठाई वगैरह डालना (२०) चमड़ी उतारना (२१) पित्त काड़ना (२२) उलटी करना (२३) दाँत निकालके डालना :(२४) आराम लेना (६५) गाय भैंस .