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________________ व्याख्यान-यत्तीसवाँ । ... शवकी. अन्तिम क्रिया करके साधु उपाश्रय में आये। वृद्ध साधुके अंग ऊपर जनोई और धोती के बदले चोल पट्टा ही देखकर आर्यरक्षितसूरिजी महाराजने पूछा कि महानुभाव, जनोई कहां ? धोती कहां? अरे जनोई लाओं। धोती लाओं। मेरे पिता मुनिको इस तरह किसने हैरान किया? साहेब, युवान टोलाने धमाल करके यह सब कुछ किया । यह बात सुनकरके आचार्य महाराज कहने लगे कि गजब हो गया। ये युवानिया कोनं थे? साधु ने कहा साहव, कौन पहचाने । - भर वजार में यह वना । गुरुने कहा यह ठीक नहीं । मैं तपास करूंगा। . .... आप धोती पहन लो वृद्ध साधुसे गुरुने कहा । तव वृद्ध साधु ने कहा ना ना । अब तो चोल पट्टा ही अच्छा जनोई तोड डालने के बाद यह भी नहीं पहनी जा सकती। ठीक । तो जैसी आपकी मरजी। इस तरह आचार्य महाराज को युक्ति सफल हुई। . अब रोज प्रतिक्रमण करने आने वाले श्रावकों से आचार्य महाराजने कह दिया कि देखो । आज तुम सव साधुओं की पगचंपी करना ले किन वृद्ध साधुकी नहीं करना। अगर ये तुम्हें पगचंपी करने को कहें तो तुम कहना कि तुम सिर पर चोटी रखते हो इस लिये हम तुम्हारी पग चपी नहीं करेंगे । . .. . . ... .. .. सांजका प्रतिक्रमण शुरू हुआ। श्रावकों ने साधुओं की पगचम्पी करना शुरू कर दी । सबको की किन्तु वृद्ध साधु की नहीं की। तव वृद्ध साधु बोले कि अरे भाइयों - मेरा चांला. दुखता है जरा वा दो । श्रावको ने कहा ना
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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