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, व्याख्यान-बत्तीसवाँ
वह विद्या सीखने जाने के लिए मैं तैयार हूं। आर्यरक्षित. .. वोले। .. .
.. माताने कहा तू दृष्टि बाद की विद्या लीखके आ तो .. मुझे सन्तोप हो।
. आर्थरक्षितने पूछा कि वह विद्या पढ़नेके लिये मुझे .. कहां और किसके पाल जाना पड़ेगा? वह आप फरसाओ।
हे पुत्र ! महा प्रभावशाली विद्या पारंगत तोषलीक : नामके आचार्य महाराज जो संसारीपनेसे. तेरे मामा है उनके पास जा।
माताको नमस्कार करके आशीर्वाद लेकर शुभमुहूर्त में आयरक्षित विदा हुए । वे कहां कहां गये उसकी खवर माताके सिवाय किसी को नहीं थी। नगरके बाहर जाते ही एक सधदा बाई शेरडी (इक्षुदण्ड) लेकर आ रही थी शुकन उत्तम हुए । अविरत प्रवाल करके आयरशित उस नगरमें आ पहुंचा कि जहां गीतार्थ आचार्य महाराज 'विराजमान थे। वह पोषधशाला में गया। प्रातः काल: का समय होने से अनेक नरनारी गुरूवंदन करने आते जाते थे।
. आर्थरक्षितने विचारा कि गुरुमहाराज के पास जाके उचित विधि क्याकी जाती है उसकी सुझे खबर नहीं है। इसलिए कोई गृहस्थ आने तो उसके पीछे पीछेः गुरुमहाराजके पास जाऊँ। इतने में ढकुर नामके श्रावक. वहां गुरूवंदनार्थे आये। __ बदर श्रावक निःसही तीनवार कहके उपाश्रयमें
प्रविष्ठ हुएं । वहां जाकर द्वादशावर्त वंदन किया । फिर पंच्चक्खाणं लेके गुरू सन्मुख बैठ गए। आर्यरक्षित भी