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________________ - - प्रवचनसार कणिका है। जो लेनापति न हो तो सैन्य में अगदड़ मच चाय' और सेना व्यवस्थित ढंगले नहीं चले इसलिये सेनापति । की जरूरत है। इसी तरह समकित न हो तो दूसरे व्रतो की कोई कीमत नहीं है। इसलिये सर्व प्रथम समकित होना चाहिए। धर्मपरायण कुमारपाल महाराजा को हेमचन्द्रसूरिजी महाराजने अठारह देशके राजाओंकी हाजिरीमें "परमाहत्"... की पदवी दी थी। जैन शासन के लिये कितनी तत्परता बताई होगी तव यह पद्वी उनको मिली । तुम्हारे भी पदवी चाहिये तो जीवन धर्म-परायण सुंदर वनावो। हेमचन्द्रसूरिजी महाराज की हाजिरी में ही उनकी चरणपादुका तैयार कराके कुमारपाल राजाने त्रिभुवनपाल' .. विहार नामके मन्दिर में स्थापित की। अनन्य गुरुभक्त एसे राजा कुमारपाल को धन्य हो । जो कोई हिंसा करेगा वह राजद्रोही कहलायगा। और राज्यकी भयंकर सजाको प्राप्त करेगा। एसा बट हुकम (विशेष आदेज) कुमारपाल महाराजाने अपने अठारह देशोंमें जाहिर किया था । ऐसे वटहुक्म से मिथ्यात्वी लोग खुव खिजाये लेकिन राज्य शक्ति प्रवल थी। किसी का कुछ भी नहीं चल सकता था। सचमुच में जैन शासन की प्रभावना करना हो तो सत्व चाहिये। . कुमारपाल राजने हेमचन्द्रसूरिजी के संयोग को प्राप्त करके जैसी शासन प्रभावना को है वैसी आजतक किसी राजाने नहीं की। उस प्रभावना की अनुमोदना करने से प्रभावना, करने की शक्ति सभीको प्राप्त हो यही शुभेच्छा ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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