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________________ ૩૭ प्रवचनसार कर्णिका - नागदत्त को मुनिके इन वचनों ले आत्मज्ञान हुआ। संसार त्यागके; सातवें दिन कालधर्म पाके (मरके) देव लोकमें गया। वत्तील प्रकार के नाटक देवलोक में होते हैं । यह नाटक देखने को बैठो तो छः महीना चीत जाय । उन. नाटकों के आगे मानवलोक के नाटक सिनेमा कचरा जैसे लगते हैं। तुम्हारा उपादान पके विना देव और गुरु तुम्हें सुधार नहीं सकते। उपादान पक गया हो तो हम निमित्त बन सकते हैं। अगवानके समवशरणमें देशना के समय ३६३ पांखडी वैठते हैं। जी, जी, करे लेकिन समवसरण के बाहर जाय तो एला ही बोलें कि यह इन्द्रजाली आया है। जगतको ठगने का धंधा करता है। एसा बोलनेवालों को तो तीर्थंकर देव भी नहीं सुधार सकते । : साधु-साध्वी और पोषध करनेवाले श्रावक-श्राविका खास कारण विना यहां से वहां आंटा-फेना नहीं मारते, नहीं रखते। क्योंकि बारम्बार फिरनेसे कायी की क्रिया का दोष लगता है। शरीर के द्वारा कर्स बंधाय उसका नाम कायी की क्रिया। - ऐसे सूक्ष्म तत्वज्ञान को समझके जीवन सफल करो. यही शुभेच्छा।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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