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________________ ३७० प्रवचनसार कर्णिका साचोर नगर के आभूषण रूप श्री महावीर स्वामी । भरूच में श्री मुनि सुव्रत स्वामी। . . टीटोई गाँव में श्री मुहरी पार्श्वनाथ । ये पांचों . जिनेश्वर दुख और पाप के नाश करने वाले हैं। दूसरे (पांच) महा विदेह चिपे जो तीर्थकर हैं वे और चारों दिशाओं में, विदिशाओं में जो कोई भी अतीतकाल अनागतकाल और वर्तमानकाल सम्बन्धी तीर्थकर हैं. उन सवको मैं वन्दना करता हूं। " सत्ता तण वई सहस्सा लक्खा छप्पन अट्ठकोडिओ; वत्तीसय वासि आई तिय लोण चेइए वंदे ।। __ आठ करोड़, छप्पन लाख, सत्तानवे हजार वत्तीस सौ औह वियासो तीनलोक के विर्षे शाश्वत जिन प्रासाद है उनको में वंदता हूं। "पनरस कोडिसयाई कोडिवायाल लक्ख अडवन्ना । : छत्तीस सहस्स असिई सासय विवाई पणमामि ॥ पन्द्रह अन्ज, वियाली करोड़, अठ्ठावन लाख, छत्तीस हजार और अस्सी (पूर्वोक्त प्रासाद के विषे) शाश्वतः जिनविंय हैं उनको में वंदना करता हूं। अब जब चिन्ता मणी वोलो तव इस प्रकार अर्थका चिन्तवन करना । . पूरण नामका तापल तापसी दीक्षा ले के उग्र तप करता था। पारणामें एक काण्ठ. पात्र में भोजन लाता था, पात्रमें चार खाना थे । उसमें से पहले पात्रका आतेजाते भिक्षुकों को देता था । . . . . . .. .: दूसरे पात्र का कौवा-कुत्तों को देता था। तीसरे पात्र का मछलियां, काचवा (कछुआ) आदि को देता था।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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