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व्याख्यान-सत्ताईसवाँ.. ....
अनंत उपकारी शास्त्रकार महर्षि श्री भगवती सूत्रमें फरमाते हैं कि जोवन विकास के लिये गुणवान बनना पड़ेगा । जीवन में धर्म उतारना पड़ेगा।
तीर्थकर देवों का जगत के ऊपर जितना उपकार है इतना उपकार किसी का भी नहीं है।
अष्टकर्म से सहित वनना इसका नाम मोक्ष । मोक्ष प्राप्त करने के लिये धर्म करना है ?
लमकिती आत्मा घरके कौने में पाप करे तो भी उसे एसा लगे कि इस पापकी सजा भोगनी पड़ेगी।
भूतकाल में घरके वडील (वड़े) कार्य सोंपने के सम्बन्ध का निर्णय लेने के पहले परीक्षा करते थे।
एक शेठजी थे। वे संपत्तिवन्त और आवरूदार भी थे। उनके चार लड़के थे । ये चारों पुत्र माता-पिता आदि सभी गुरुजनों का विनय करने में तत्पर रहते थे ।
इन चारों जनोंने शेठको इतना अधिक सन्तोष दिया था कि अपने पीछे पेढी (व्यापार) कैसे चलेगी। इसकी शेठजी को बिलकुल चिन्ता नहीं थी। शेठ और शेठानी दोनों वृद्ध हुये। .
इसलिये शेठने विचार किया कि कुटुम्ब का भार तो बड़ी बहूको ही सौंपना जिससे कुटुस्वमें सुख, शान्ति स्थापित हो और लोकमें भी कुटुम्बकी इज्जत वढे ।