SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - प्रवचनसार कणिका समाज सुधारने के लिए ये नहीं मालूम कि सुधार एसे नहीं हो सकता है। सुधार करना हो तो प्रथम अपना जीवन सुधारना पडेगा । संसार वर्धक पुरुषार्थ को धर्म पुरुषार्थ नहीं कहां । जाता किन्तु मोक्ष प्रापक पुरुषार्थ को धर्म पुरुषार्थ कहा । जाता है। भगवान तो नवकार मय बने होने से नवकार की साधना अपन को भी करना है। जो साधना में लीन चनेगे तभी अपन नवकार के सच्चे आराधक कहलायेगे। जैन शासन में सच्चा समझदार वहीं है जिसे अपनी आत्मा पर दया प्रगट हुई है । अपनी आत्मा अनन्तकाल से जन्म मरण के चकर में भटक रही है। उसका विचार करना चाहिए। सुभद्रा सती के रुप लावन्य से आकर्पित होकर एक युवान ने तय किया कि लग्न तो सुभद्रा से ही करना । लेकिन कुल में और धर्म में फर्क होने से ये नहीं "हो सकता था, लेकिन लग्न जो सुभद्रा के साथ न हो तो जीवन धूल है। सुभद्रा के प्रति एसी लगन लगी होने से युवान ने तो धर्म परिवर्तन भी किया। स्वयं जैन धर्म का कृत्रिम उपासक वनके नित्य दर्शन पूजा आदि करने के लिये जाने लगा। जब सुभद्रा मन्दिर में आती थी तभी वह मन्दिर में आता था । खूब भक्ति भाव करते युवान को देखकह सुभद्रा को उसके प्रति स्नेह जगा । स्नेह आगे वढा.। आखिर
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy