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________________ व्याख्यान - पच्चीसवाँ ३१७. काढे | लेकिन राजाने खूब ही आग्रह करके गोचरी ले जानेके लिये हाथ पकड़ा . मुनिने पातरां की झोली को बगलमें दवा रखने का बहुत ही प्रयत्न किया । लेकिन, पाप छिपा रह सकता नहीं है । खेचाखेच में झोली टूट पडी । पातरां जमीन पर पड गये । और उसमें से घरेणां (अलंकार) वाहर आये । अरे । ये तो हमारे गुम हुये दो पुत्रों के ही अलंकार हैं । इसलिये तुमने ही हमारे पुत्रों को मार डाला है । पोल खुल जाने से मुनिको बहुत ही पछतावा हुआ। इतने में यह सव लीला बन्द करके वह शिष्य हाजिर - हुआ और आचार्य को सब बात समझा दी । अपाढाचार्य को अपनी भूल के लिये पछतावा हुआ। फिरसे महाव्रत अंगीकार करके मोक्षगामी बने । · इसलिये समझो कि जीवन में धर्मश्रद्धा आये विना धर्म नहीं होता है | श्रद्धा विना जीवनभर तप करो तब भी नहीं फले और श्रद्धा पूर्वक थोड़ा भी करो वह भी महालाभ को देनेवाला हो । श्रद्धा यह जैन शासन का दीपक है । किए हुए कर्म किसीके भी छूटते नहीं हैं । सती कलावती गर्भवती थी । प्रसूति के लिये पियर - से आमन्त्रण आया | साथमें इसके भाई जयसेनने वहन के लिये दो बेरखा (बाजूबन्ध) भेजें। वेरखा की सुन्दरता देखके सखियोंने प्रशंसा करते हुए पूछा कि यह किसने भेजें ? प्रत्युत्तर में कलावतीने कहा कि मेरे व्हाला (प्रिय ) .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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