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________________ व्याख्यान-तेईसवाँ २८१ - डाला था वह तो रानी का भाई था। फिर तो उसे ... खूब पछतावा हुआ। और पश्चाताप सच्चे दिल से होने से उसका उद्धार होते देर नहीं लगी। . उपसर्ग दो प्रकार के हैं :- (२) अनुकल उपसर्ग (२) प्रतिकूल उपसर्ग। प्रतिफल उपसर्ग में स्थिर रहना सरल है किन्तु अनुकल उपसर्ग में स्थिर रहना सरल नहीं है । ... .मनुष्य शायद सर्वत्याग करके साधु न हो सके । .... अरे । वारहव्रत भी न ले सके परन्तु न्यायनीतिका पालन न कर सके एसा नहीं हो सकता है। . वर्तमान में सत्ताधीश अन्याय के सिंहासन ऊपर वैठके न्याय की बात करते हैं। लेकिन हाथी को हराडा कौन कहें ? - किसी को भी जैसा वैसा बोलने के पहले खुव विचार' __ करो । बोलने की पीछे ये शब्द भवान्तर में भी आडे आते हैं। किसी के ऊपर खोटा आक्षेप (आरोप) करते अपने को देर नहीं लगतीं । लेकिन जब उसका नतीजा आयेगा तो भारी पड़ेगा। मास क्षमण के तपस्वी मुनि मेतारज राजगृही में भिक्षा के लिये निकले। एक सोनी के आंगण में आके उनने "धर्म-लाभ दिया । खुव ही विनय पूर्वक इस सुनार ने मुनि को वंदन किया । फिर वहोराने की वस्तु लेने के लिये घर में गया। घर में से मोदक लाके भावपूर्वक वहोराये । मुनिवर आशीष देके विदा हुए । वह सोनी जब मोदक लेने को घर में गया था तव.
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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