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________________ २६२ प्रवचनसार कणिका ही दिखाती हैं । जव तक जीवन में एसा तपनहीं मावे तवतक आत्म श्रय नहीं हो सकता है। _अपने जीवन की भूलों को देखने वाले कल्याण मित्र तो आज शोधे भी नहीं जडते । केवल-ज्ञानी की हाजिरी में केवल ज्ञान सिवाय दूसरा कोई प्रायश्चित नहीं दे एसी शास्त्राज्ञा है। अवधिज्ञानी अथवा मन : पर्यय ज्ञानी हो तो श्रुतज्ञानी प्रायश्चित नहीं दे सकता हैं। तीनकाल की सर्ववात जाने वे केवली परमात्मा कहलाते हैं । जिसको यहलोक ही दिखाते है। और परभवको मानता ही नहीं है उसे परमात्मा भी नहीं सुधार सकते। कच्चे कान वाला, दिल में शुद्ध वुद्ध विनाका, और छीछरा हृदय वाले के पास से प्रायश्चित न लिया जाय । बहुत से गरीव भी एसे हैं जो जीवन में तुमसे भी कम पाप करते होंगे। अनीति भी कम करते होंगे। ___ कहा है कि "सोना कलके लेना मनुष्य वसके लेना फिर भी वसके लिये गये मनुष्य भी खराव निकलते हैं । महाराजा दशरथ, श्री रामचन्द्रजी और सीताजी आदि महापुरूपों के जीवन का वर्णन करते करते कलिकाल लर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजा के रोमांच खड़े हो गये थे। . इन महापुरूपों का जीवन कितना उत्तम होगा? काम लोभ में बैठे होने पर भी उन्हें ये अच्छा नहीं मानते थे। बम्बई जानेवाले सभी सुखी होने की इच्छा से ही
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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