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________________ -. व्याख्यान-वाईसवाँ ... अनन्त ज्ञानी तारक जिलेश्वर देव फरमाते हैं कि जीवन में समकित आये विना जीवन गिनती में नहीं आता है। , सूरि पुरंदर पू० हरिभद्र सूरिजी महाराज फरमाते हैं। कि लोकविकद्ध दश कार्यों का त्याग करना चाहिये : : : (१) सव की निन्दा करना । ..... (२) गुणवान पुरुषों की निन्दा करना। .. (३) धर्म किया करते न आती हो उन्हें देखके हंसना। (४) जगतमें पूजनीय हों उनकी निन्दा करना । ' (५) नगर विरुद्धिका संसर्ग करना । () धर्म का उल्लंघन करना। (७) आमदनी की अपेक्षा खर्च अधिक रखना। .. (८) दान-शील-तप भाव रूप धर्म पालक के गुण नहीं गाना । (९) गुणीजन पर आपत्ति आवे तव खुशी होना । (१०) शक्ति होने पर भी दूसरे को आफत से नहीं बचाना । .. ऊपर के लोक निन्द्य कार्य धर्मी पुरुष नहीं करता है। अच्छे काम करते. समय लोग निन्दा करें उसकी परवाह नहीं करना । .. भद्रिकभाव जिसमें आया है वह प्रथम गुणठाणा को ... प्राप्त हुआ कहा जा सकता है।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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