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________________ व्याख्यान-इक्कीसवाँ २५१: . - - ... ... वैद्यराज ने नाडी देखके औषधि दी। कुछ राहत मालूम हुई। सवको ऐसा लगा कि नुकशान नहीं आवेगा। चिन्ताकी गहरी छायामें सव वैठे थे। सवको ऐसा लगता था कि क्या होगा ? कमलादेवी और सुन्दरी प्रभु प्रार्थना द्वारा वकचुल की शाता प्रार्थ रहीं थीं। . . - रातके दो वजेका समय था। काली रातने अपना भयंकर रूप जमाया था। वहाँ एकाएक बंकचुल को घबराहट होने लगी (गभरामण वध गई)। नाडी काबू वाहर चलने लगी। - मालवपति तमाम परिवार के साथ बैठे थे। राजवैद्य और नगरी के तमाम वैद्य सेवामें हाजिर थे, वहाँ तो वंकचुल के मुंहसे "नमो अरिहंताणं" शब्द निकल पडा और क्षणमात्र में उसका प्राणपखेरूं उसके नश्वर देह पिंजरे में से सदाके लिए उड गया (वंकचुल मर गया)। वाह रे वंकचुल! जीवन जी के जाना! और मृत्यु धन्य बना दी । धन्य है तेरी आत्मा को । कमला हृदयफाट रुदन करने लगी। सुंदरो का कल्पांत भी हरेक के दिलको हचमचा देता था । मालवपति भी रोने लगे। राज्य परिवार शोक सागर में डूब गया। उज्जयिनी में सात दिनका शोक जाहिर हुआ। . वंकचुल की श्मशान यात्रा एक राजवी की अदव से निकली । सैना ने सलामी दी। वंकचुल की मृत्यु के बाद मालवपति ने जैन मन्दिर में धर्म महोत्सव शुरु किया । जिस दिन वंकचुल की मृत्यु होती है उसी दिन उज्जयिनी से गया दूत ढीपुरी नगरी में पहुंच गया ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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