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________________ - २३४ प्रवचनसार कर्णिका कमरमें पिस्तोल लगा दी। मनमें इष्टदेव का स्मरण करके वकचूल रवाना हो गया । वंकचूल को यह कल्पना नहीं थी कि ग्रे चोरी इसके जीवनमें वरदानके समान वल जाएगी। वह अपनी योजना में लफल हुआ और छेक रानीके झरोखा में आ गया । झरोखा में देखता है कि अन्दर एक पलंग के ऊपर कोशय पट्टकी चादर ओढके एक नारो सोरही है। उसका कंचुकीबंध छूटा हो जानेसे उसके उन्नत उरोज कलश के समान शोस रहे थे। गौर बदन के ऊपर गुलावी खिल रही थी। इसका एक कोसल हाथ पलंग के बाहर था। झांसा दीपक जल रहा था। इस दीपकके प्रकाश में इतना देखने के बाद वंचूल धीरे धीरे पलंग के पास गया। पलंगके नीचे की पेटोको खेंची लेकिन पेटी नहीं खिलकी । क्योंकि पेटीको ताला लगाके एक सांकल ले बांधी हुई थी। इस सांकल का आखिरी हिस्सा रानी के तकिया के नीचे दवा हुआ था। इस तरह की पेटी की व्यवस्था होगो एसी कल्पना भी बंकबूल को नहीं थी। वंकचूलने दूसरी बार पेटी खेची। वहाँ रानी जग ई। जगने के साथ ही जल्दीसे रानी बैठ गई। पंकचूल बमका ! एक कोनेसें जाके खड़ा हो गया। अब क्या होगा एसा विचार करने लगा। वहाँ तो भययुक्त वाणीले रानां लने लगी कि तू कौन है ? क्यों आया है ? वंचुलने नर्भयतासे जवाब दिया कि में चोर हूं और चोरी करने पाया हूं। · रानी फिर से वोली। कि तूं किसके यहां चोरी करने के आया है ? उसकी तुझे खवर है ? . .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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