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________________ - - - व्याख्यान-इक्कीसवाँ २१९. दी। मोनवत्ती के झौखे प्रकाश में तीनो जन देख सके कि यह धनभंडार है। शस्त्र से दो पेटियों (सन्दूक.) के ताले क्षणभर में तोड डाले। दोनो पेटियों में नीलममणि भरे हुये थे। ... एक एक मणि की कीमत लक्ष सुवर्ण मुद्रा थी। .. दोनो पेटियों के तमाम मणि थैली में भर दिये। पेटी वंध की । वंकल साथियों के साथ वाहर निकल गया । जरा भी आवाज किये विना दीवाल कूद के रवाना हो गये । परन्तु वृक्ष पर बैठे हुये आदमी को उतरने में जरा आवाज . होने से कुत्ते भौंकने लगे। इसलिये वृद्ध चौकीदार जग' उठा । परन्तु चारों तरफ देखने से कुछ भी नहीं दिखाने से चौकीदार फिरसे सो गया । वंकल का साथी छटक गया । . पांचों जन अश्वों पर बैठ के विदा हो गये। पांथशाला के संचालक को पांच सुवर्ण मुद्रा दी। विचारा संचालक खुश खुश हो गया । . नगरी के मुख्य दरवाजा के चौकीदार ने पांच अश्वा. रोहियो को रोका । कौन हो ? कहां जाना है ? राहगीर हैं ! वंकचूलने बेधडक उत्तर दे दिया। अश्व चलते वने, एक कोश जानेके वाद राजमार्ग को छोडकर पांचों जनोंने अपने घोडे उलटे रास्ते दौडांये। प्रातःकाल होते ही पांजोंजन शिवालय में आ गए । प्रथम आए हुए पांच, साथियोंको. इन अश्वों पर आनेका कहके उनके अश्वों पर वंकचूल रवाना हुआ। दो दिनका अविरत प्रवास . करके रातके दो बजे वंकचूल अपने साथियों के, साथ सिंहपल्ली में आ गया।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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