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________________ व्याख्यान-अठारहवाँ २१७ ‘जाता था। वजारों की वस्तुओं का सौदा, भी. कभी कभी कर लेता था । .... सातवें दिन सव साथियों के साथ. जीमकर वंकचूल अपने साथियों को योजना समझाने लगा। देखो ! आज रातको यहाँ के धनकुबेर के यहाँ चोरी . करना है । चोरी करने के लिए मैं (वंकचूल) भोपा और . दूसरे तीन साथी मिलके पांच जन जायेंगे। वाकीके पांच जन सव माल लेकर अपने अपने अश्वों के साथ अभी हाल नगरी का त्याग करो! और यहाँ से दश कोश के. ऊपर एक शिवालय है, वहाँ जाके रूकना। .. भोपा, सुन ! अपनको धनकुबेर के भवनमें से चोरी करना है। उसका धनभंकार वगीचामें आए हुए महादेव .. के मन्दिर में है। - भोपाने पूछा कि साहेव, आपने कैसे जाना कि धन मंडार वहाँ है। . वंकचूलने भोपाके मनकी शंका का समाधान करते ___ हुए कहा कि मेरी चकोर नजर दीवाल के पीछे क्या है ? वह देख सकती है। मेरा अनुमान खोटा (गलत) नहीं होता है। अपन अभी तो नृत्य देखने जाते हैं। एसा कह के निकल पड़ना है । फिर एक प्रहर तक वजार में इधर उधर फिर के धन कुबेर के बगीचा के पास जाना है? वहां एक वृद्ध चौकीदार चौकी करता है। एक एक प्रहर के बाद दूसरे चौकीदार आके देख जाते हैं । . . . . . . .. इस लिये एक प्रहर के अन्त..में जव चौकीदार चला जाय कि उसी समय दीवाल कदः कर अपना बगीचा में
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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