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________________ व्याख्यान-इक्कीसवाँ - - - महात्माने धर्मलाभ दिया। ये मीठा आशीर्वाद सुनके वंकचूल महात्मा. के चरणों में झुक गया । भगवन्त । फिरसे दर्शन देना । अविनय अपराध की क्षमा करना । ... महात्मा चले गये। एक मार्गदर्शक आगे चलने लगा । पीछे महात्मा चलने लगे। जाते हुये महात्माओं को देखके वंकचूल उनको पुनः पुनः नमस्कार करने लगा। एक भयंकर लटारा में "मौन" ने कितना अधिक परिवर्तन ला दिया । मौन का महिमा अपार है।“ मौनी. सर्वत्र वंद्यते" । मौनी सर्वत्र वंदाता है। मौन रहने से कंकास. (लड़ाई) को नाश होता है । मौन ये तप है। ... वंकचूल भवन में आया । प्रतिज्ञा उपरांत गुरुने शराब पीने से होनेवाले नुकशान को समझाया भविष्य में उसका भी त्याग करने का लक्ष्य में राखने को कहा। . इस वातकी यादी आते ही वंकचूल विचार करने लगा कि स्वतंत्र मनुष्य शराव में पराधीन क्यों ? एसे विचार मात्र से उसने निर्णय कर लिया कि आजसे शराब पीना बन्द । - कमलादेवी और सुन्दरीने जव वकचल के द्वारा लिये गये चार नियम और शराव पीने के त्याग की बात सुनी तो उनका हृदय वहुत ही आनन्दित हुआ। और उनको विश्वास हुआ कि अव धीरे धीरे वंकचूल सुधर जायगा। वंकचूल लिये हुये नियमों का पालन कितनी मक्कमता (दृढता) पूर्वक करता है । और उसका उसके जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ता है ? अब इसका विचार करें। एक समय मध्य रात्रिका समय थाः। वंकचूल के आसपास मित्र वैठे थे। :::. :.:....
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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