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________________ व्याख्यान-इक्कीसवाँ - पुष्पचूल को समझाने में मातापिता ने जरा भी कसी नहीं रक्खी थी। परन्तु उनका वह प्रयत्न बेकार गया । अन्तमें अपनी पुत्रवधू के द्वारा भी पुत्र को समझाने की राजारानीने कोशिश की कमलादेवी ने अपने पतिको रात में समज्ञाने का प्रयत्न किया । थक करके लोथ पोथ हुआ पुष्प चूल रातके प्रथम पहरकी पूर्णता समय कमलादेवी के शयनरवंड में आया। तव चिन्ता के बोजसे लदी अपनी प्रियतमा का मुखकमल देखकरके पुष्पचूल पूछने लगा कि हे प्रिय, आज तूं इतनी अधिक उदास क्यों है। क्या किसी ने तेरी आज्ञाका उलंधन किया है। या किसीने तेरा अपमान किया है। कमलादेवीने कहा नहीं स्वामिनाथ, आप के जैसे स्वामी की पत्नी का कोई अपमान कर सके ये वात अशक्य है। परन्तु आज में एक चिन्ता से व्यथित बनी हूं। इसं चिन्ता से ही मेरा मन उदास रहता है। पुष्पचूलने कहा कि हे प्रिये, एसी क्या चिन्ता है? क्या तुझे पुत्र प्राप्ति की चिन्ता है ? प्रत्येक नारी के अन्तर में लग्न के बाद यह चिन्ता लहजपने से जगती रहती है। लेकिन अपने लग्न को हुये तो अभी दो वर्ष भी पूरे नहीं हुयें । इसलिये अभी से एसी चिन्ता करना तुझे शोभीत नहीं है। ... .. पति के वचन सुनकर कमलादेवी कहने लगी कि हे स्वामिनाथ ! मेरे मन में एसी कोई भी चिन्ता नहीं है। परन्तु आपके जीवन सम्वन्धी एक चिन्ता मुझे . सताया करती है। आप सुन्दर हो, बुद्धिवन्त हो, आपके माता पिता भी आपके प्रति पूर्ण प्रेमभावी हैं। परन्तु , आपके
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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