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________________ १८९ व्याख्यान-वीसवाँ रेतके कोलिया (ग्रास) खानेकी अपेक्षा, लोहेके चना चवाने की अवेक्षा और तलवार की धारपे चलने की अपेक्षा श्रमणावस्था का पालन कठिन है। कोई श्रीमन्त मनुष्य हमारे पास दीक्षा लेने को आवे तब हम उसे धर्म क्षेत्रमें लक्ष्मी खर्च करने को कहते हैं। उस समय वह मनुष्य प्रेमसे खर्चे तो मानना कि दीक्षाके योग्य है और रोंदणा रोते रोते खर्चे तो मानना कि दीक्षा के अयोग्य है। - कोई शरीरमें तगड़ा मनुष्य दीक्षा लेने आये तो हम उससे यथाशक्ति तप कराते हैं । जो वह तप प्रेमसे करे: तो वह दीक्षा देने के योग्य है ऐसा मानते हैं और प्रेमसे तप नहीं करें तो उसे हम अयोग्य मानते हैं।" कोई बालक दीक्षा लेने आवे तो उसे विना काम भी हम बैठ-उठ करने को कहते हैं। प्रेम से करे तो समझनों कि वह दीक्षा के योग्य है। नहीं तो अयोग्य है। ये सब परीक्षा किए बिना किसीको भी दीक्षा नहीं दी जानी चाहिए । अयोग्य आत्मा दीक्षा ले के लंजवता है, निंदा कराता है। संस्था को विगाडता है इसलिये परीक्षा किये बिना दीक्षा नहीं देनी चाहिए । : हितकारी भाषा बोले इसका नाम-भाषा समिति । .. जगतमें सुख-स्वप्न सेनेवाले अनेक मानव बसते हैं।" कोई.धनका इच्छुक है, कोई पुत्र का इच्छुक है। कोई प्रियजन को मिलने का इच्छुक है। किसीको कीर्ति की कामना है। कोई सत्ता प्राप्ति की इच्छा वाला हैं । एसे अनेक प्रकारको इच्छाओं में मनुष्य लिपटे हुए हैं। . . अनेक मनुष्य अर्थहीन चिन्तामें डूके हुए हैं। ... .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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