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________________ .. व्याख्यान-चीसवाँ और १०१ संमूच्छिम अपर्याप्ता मिल के कुल ३०३ भेद ननुष्य के हुये । .. .. __ढाई द्वीप में विचरते तीर्थकरो की संख्या उत्कृष्ट १७० और जघन्य २० को होती है। हाल में २० तीर्थंकर हैं। वे महाविदेह में विचरते हैं। . . . .. जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में जव श्री अजितनाथ भगवान विचरते थे तव शेष चार भरत क्षेत्र में दरेक में एक एक तीर्थकर, पांच ऐर वतों में हरेक एक एक होने से पांच तीर्थकर और पांच महाविदेह के १६० विजय के १६० मिल के कुल १७० तीर्थकर वहां उस समय विचरते थे। · पांच भरत, पांच ऐर वत और पांच महाविदेह इस तरह पन्द्रह क्षेत्र कर्मभूमि के हैं। पांच महाविदेह में हमेशा चौथा आरा रहता है। " ये कालचक्र अनादिकाल से चलता आया है और अनन्तकाल तक चलेगा। चौरासी लाख जीवयोनियों में अपने भटकते आये हैं। दिवालो पर्व में छह करने वाले को एक लाख उपवास का फल मिलता है। उस दिन भगवान महावीर मोक्ष में गये होने से उसे निर्वाणकल्याणक दिन कहते हैं । इसलिये उस दिन धर्मध्यान में तल्लीन होके रहना चाहिये। ____कोई निन्दा करे तो घबराना नहीं चाहिये। और ' प्रशंसा करे तो फुलाना नहीं चाहिये ये धर्मी का लक्षण है। .. ढाईद्वीप में रहने वाले सूर्य, चन्द्र, ग्रह और नक्षत्र मेरु पर्वत को प्रदक्षिणा देते फिरते रहते हैं। वाकी के द्वीपों में स्थिर हैं। .. .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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