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________________ व्याख्यान-बीसवाँ १७५. - दशवें गुणठाणा से ग्यारहवें जाने वाले आत्मा नियम । से पड़ते हैं। दशम से बारहवें में जाने वाले नहीं गिरते हैं। क्यों कि दशम से सीधे वारहवें गुणठाणा के भाव प्राप्त करने वाले क्षपक श्रेणी वाले हैं। मोहनीय कर्म की प्रकृतियों को उखाड़ के फेंकते फेंकते वे आगे. वढे हैं। . . . दशम से ग्यारहवें का भाव प्राप्त करने वाले तो उपशम श्रेणी वाले हैं । वे मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का क्षय नहीं कर के आत्मा में उपशम. रूप में रख के आगे बढ़े हैं । विलकुक उपशामिक ने प्रकृतियां हो जायें इस लिये के जीव ग्यारहवाँ गुणस्थान वर्ती गिनाते हैं। .. परन्तु सम्पूर्ण उपशम हो जाने के पीछे वह उपशमता: दीर्घ टाइम टिकती नहीं है। और उपशमित उन प्रकृतियों में से धीरे धीरे उपशमता दूर होती जाती है। वैसे वैसे आत्मा नीचे पडता जाता है। आरंभ-समारंभ का जिसे डर नहीं है वह समकिती, नहीं है। आरंभ-समारंभ का प्रेम हो उसमें समकित होता ही नहीं है। ___ मानव जन्म में आना हो उसे गर्भ के और जन्म के 'दुख. सहन करने ही पड़ते हैं। तुम्हारे जीवन में गुप्तपाप चालू हैं। उन्हें कोई जानता नहीं हैं । उसका भी तुम्हें आनन्द है। लेकिन इस से तुम्हारा आत्मा कर्म से अधिक भार वाला वन : रहा है। इसकी तो तुम्हें खवर तो होगी ही? .... ... तुम्हारे गुप्त पापों को जान सकने वाले तुम्हारे प्रति अनुकम्पा बुद्धि से मानलो कि ना भी कहें लेकिन इस से तुम्हारे दुष्कृत्य का फल नष्ट होने वाला नहीं है। ..
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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