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________________ व्याख्यान-सोलहवाँ : इस संसार में मोह का साम्राज्य अधिक है । जो मोहकी पराधीनता में आनन्द मानता है उसे आत्मा का पूजारी कह ही नहीं सकते । मोह का साम्राज्य एसा है कि तुम उपाश्रय में रहते हो वहां तक तुम्हें धर्म याद आता है परंतु घरमें जाने के बाद वैराग्यं टिकता नहीं है। जैसे गधे को सौमन सावून से नहलाया जाय किन्तु जहाँ राखका ढेर देखे कि आलोटे विना नहीं रहेगा इसी प्रकार संसारी जीव धर्म स्थानक में से बाहर जाय तो. संसार में रमे विना नहीं रहेगा। . . . जिन वस्तुओं में अपन सुख मानते हैं उनमें दुख भरा हुआ है। निर्ग्रन्थ मुनि संयम साधना द्वारा भवको रोकनेवाले होत हैं सुन्दर कोटि की आराधना करने से संसार की तकलीफें दूर होती हैं । जिसने जीवन में धर्म किया है। उसका संसार अटक जाता है। - रस गारव, बृद्धि गारव और शाता गारव इन तीनों के जो त्यागी होते हैं वे साधु कहलाते हैं। ... जगत के जीव संसारी कार्यों में जितनी मेहनत करते हैं अगर उतनी धर्मकार्यों में करते हो जाये तो श्रेय दूर नहीं है। .... भगवान को आंगी इसलिये की जाती है कि वालजी. . व धर्म को प्राप्त हो जायें और वोधिको प्राप्त करें। भगवान को मुकुट पहनाइये तव उनकी राज्य अवस्था को याद करना है। वे राजवी होने पर भी राज्य को त्याग करके दीक्षा ली थी। .::. कोल्हू के वैल के समान संसार में चक्कर लगाते
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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