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________________ - - - प्रवचनसार कणिका अनुमोदना करके, सम्यक्त्व की प्राप्तिके समय, और दो . "मित्र हों उनमें एक मर कर के देव हो और दूसरा मर . कर के नरक में जाय तो पूर्वभव के स्नेह से देव उस : नरक में गये मित्र की पीडा को देव शक्ति से कुछ समय तक उपशमाते हैं । तव कहीं उस नारक को सुखानु भव होता है। एसी नारकीयों की वेदना को समझ कर के समझ दार .. आत्माओं को स्वयं नरक गति में नहीं जाना पड़े इसलिये . ‘हिला, रौद्रता. आदि पापों से बचने के लिये प्रयत्नशील “दने रहना चाहिये। इन नारकीयों के दुखों की अपेक्षा भी अनंत गुने दुःखों का एक दूसरा स्थान है :- कि जिसके अन्दर यह जीव अनन्तानन्त काल तक रह कर के और अथाग वेदना सहन करके आया है। उस स्थान के बारे में समझाते हुये शास्त्रकार महाराजा फरमाते हैं कि : "जं नरए नेरइया दुहाई पावंति घोर अणंताई. तत्तो अणंत गुणियं निगोअमज्झे दुहं होई ।” अर्थात् नरक में रहने वाले नारकी जीव घोर अनन्ता “दुखों को पाते हैं। उन नरकों के दुखों से भी अनन्ता गुना दुःख निगोद में रहनेवाले जीव भोग रहे हैं। . पौद्गलिक वासना के आधीन बने हुये कितने वहुल कर्मी जीव नीचे उतरते उतरते ठेठ निगोद तक पहुंच कर . के अनन्त दुःखों के आधीन हो जाते हैं। अनादि काल से सूक्ष्म. निगोद में रहते जीव परिभ्रमण कर के.पीछे सूक्ष्म .. निगोद में गये जीवों के दुःख में विलकुल फेरफार नहीं है। सिर्फ भवभ्रमण करके ठेठ सूक्ष्म निगोद में गये वे
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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