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________________ । .१०० प्रवचनसार कर्णिका सामान्य नहीं है। लेकिन महा पंडित हैं। यह है जैनाचार्य की प्रभावकता, समय सूचकता और कार्य कुशलता। . नगरजनोंने ठाठ से उनका नगर प्रवेश कराया । और जैन शासन की मारे प्रभावना हुई। - तुम्हें अग्निका जितना भय है उतना अविरक्तिका भय है? वीतराग के कहे हुये धर्म में शंका लाने वाला मिथ्यात्व मोहनीय कर्म बांधता है। वीच के बाईस तीर्थंकरों के साधुओं को चार महानत .. होते हैं क्यों कि वे ऋजु और सरल होते हैं । लेकिन पहले और अन्त के तीर्थंकरों के साधुओं को पांच महाव्रत होते हैं। साधु दो प्रकार के हैं। (१) स्थविर कल्पी (२) जिन कल्पी। वस्त्र पात्र और संयम के उपकरण रक्खें दे स्थविर कल्पी कहलाते हैं। वस्त्र, पात्र न रखें वे जिन कल्पी कहलाते हैं। जिनका पहला संघयण हो, साडे नव पूरवका ज्ञान हो, अन्तर्मुहुर्तमान में साडा नव पूरव का परावर्तन कर सकते हों, छः महीना तक आहार पानी नहीं मिले तो भी चला सकते हो ये सव शक्तियां जिनमें हो वे ही जिन कल्प स्वीकार सकते हैं। स्थविरकल्पी साधुका एक कपड़ा रह गया हो तो साडेपांच माइल तक फिर से लेने जाने की विधि है। जिन मन्दिर बंधवाने वाला श्रावक अच्युत देवलोक में जाता है। भगवान की वाणी सुनने से संसार का पाप रूपी जहर उतर जाता है।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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