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व्याख्यान-वारहवाँ
अपने लघु वान्धव लक्ष्मणजी और महादेवी सीताजी के साथ पधारे हैं । अव अपन को उनकी आज्ञा के अनुसार करना है। सव फिरले रामचन्द्रजी आदिको नमस्कार करते हैं । अन्त में शान्ति फैल गई । शान्ति का संग करते हुये श्री रामचन्द्रजी बोले देखो और सुनो। कल सुवह छः बजे पूर्व दिशा का दरवाजा एकाएक खोलना। लक्ष्मण एक हजार सैनिकों के साथ बाहर निकलते ही . दरवाजा फिरले बन्द कर देना । और प्रतिदिन की तरह युद्ध चलने देना । लक्ष्मण अपने सैनिकों साथ सीधा महाराज के ऊपर हमला करेगा । फिर देखो मजा । योजना तय हुई। सव विरवर गये । प्रातःकाल की झालर वज उठी । छः बजे डंका वजने के साथ हो पूर्व दिया का दरवाजा खुल गया । आदिनाथ की जय । गगने भेदी यावाजों के साथ लक्ष्मणजी सैन्य के साथ बाहर निकल गये । दरवाजा बन्द । शत्रु सैन्य में आश्चर्य की लहर दौड़ गई। एकाएक होनेवाले शत्रु के आक्रमण से महाराजा . के सैन्य में बहुत चहल पहल हो गई। एक प्रहर युद्धका खेल देखकर लक्ष्मणजी ने धनुष्य चढा दिया । देखते देखते शत्रु जमीन दोस्त होने लगे। दो घड़ी में तो शत्रु सैन्य में हाहाकार मच गया। शत्रु मुठी बांधकर के भागने लगे। यह दृश्य देखकर महाराजा ने अपना रथ आगे क्रिया । वरावर लक्ष्मणजी के सामने रथ आ गया लक्ष्मणजी ने तीर वर्षा में बेगकर दिया। पहले तीरसे महाराजा का मुकुट उडा दिया। उसके बाद दूसरे और तीसरे. तीरसे तो महाराजा के रथ के दोनों घोड़े घायल हो गये। महाराज सावधान हों उसके पहले तो चौथे तीरने तो महाराजा के हाथमें रहनेवाले तीरके टुकड़े टुकड़ा कर