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________________ - व्याख्यान-वारहवाँ . परीक्षा करना हो तो वज्रकर्ण जब नमस्कार करने आवे . तव अंगूठी निकलवा करके नमस्कार कराना वस । राजा को जो चाहिये था, मिल गया, राजा के कान होते हैं मगर शान नहीं होती है । , एक सुअवसर में वज्रकर्ण राजा नमस्कार करने को .. आया। राजलभा भरी हुई थी। मंत्री, सामन्त वगैरह न्यथास्थान वैठे थे। यहां वज्रकर्ण राजाने सभा में प्रवेश किया। निकटमें जाकर के वज्रकर्ण राजा नमस्कार करने गया। इतने में तो राजा की भयंकर आवाज आई। अंगूठी उतार के नमस्कार करो। तुम रोझ मुझे ठगते हो। एसा नहीं चलेगा। मेरी आज्ञा का पालन करो। वज्रकर्णने खूव समझाया। लेकिन महारांजा नहीं माने । वज्रकर्ण वहां से सत्वर प्रवास करके अपनी नगरी में वापस चला गया। . - नगरी के दरवाजे वन्द होगये। सीमाके सैनिक सजाग वन गये । गुप्त सेना पर संदेशा भेज दिया कि सत्वर हाजर होजाओ। .. चतुरंगी सेना लज्ज हो गई । युद्ध की नौवत एकाएक बज उठी। यानी युद्ध का नगारा वजने लगा। वनकर्ण राजाको खवर थी कि मेरा सैन्य कम है, छोटा है। इसलिये जीतने की कोई आशा नहीं है। फिर भी जाते जाते युद्ध कर लेना है। लेकिन नमस्कार नहीं करना है। धर्म की कसौटी आती है तभी मालूम होता है कि दृढ निश्चय (मकमता) कितनी है? ... इस ओर उपरी महाराजा अपनी प्रचंड सेना के साथ: हुमला करने आगये। खूनखार लडाई शुरू होगई। लेकिन दरवाजा वन्द होने से महाराजा के पक्षमें खूब खुवारी.
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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