SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - व्याख्यान-दसवाँ : . वडील को देखकर ही हाथ जुडजाये मस्तक नम जाय यांनी सिर झुक जाय उसका नाम है विनय । एसा क्या तुम्हारे घरमें है ? ... ... नारकी के समकिती जीवों को अवधि ज्ञान होता है। इसलिये उस ज्ञानके द्वारा स्वयं पूर्व किये कर्मों को देखते हैं । और समतापूर्वक समय पसार करते हैं । :: नारकी के जीव कोई पच्चक्खाण नहीं कर शकते हैं। इसलिये वहां समकिती जीव भी अविरति ही होते हैं । - वीतराग शासन को प्राप्त हुआ श्रावक अपनी सम्पत्ति के चार भाग करे । एक भाग तिजोरी में रक्खे । एक भाग व्यापार में लगावे । एक भाग घरखर्च के लिये रक्खे। . और एक भाग धर्म में लगावे । - अज्ञानी आत्मा संसारी प्रवृत्ति में कष्ट सहन करने को तैयार हैं परन्तु धर्मकार्य में कष्ट सहन करने को तैयार नहीं हैं। . जिसकी अपने द्रव्य से पूजा करने की शक्ति नहीं है एसा श्रावक जिनमंदिर में जाकर के कचरा साफ करे" तो यह भी पूजा है । केसर चन्दन के द्वारा होने वाली नव अंगको पूजा ही पूजा है एसा नहीं मानना । . आचारांग सूत्रमें कहा है कि जीव मेरा मेरा करके मृत्यु. को प्राप्त होते हैं और दुखी होते हैं । समकित द्रष्टि गृहस्थ दो प्रकारके होते हैं (१) . असंयत और (२) संयतासंयत। जिसने कुछ भी व्रत नहीं लिये वह असंयत और अमुक अंश में व्रत लिये हों वह संयता संयत ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy