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प्रवचनसार-कर्णिका
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मिट्टी की पाल वांध कर अंगारे सुलगाये फिर भी मुनिराज विचार करते हैं कि मेरे सुसरने सेरे सिर पर मोक्षकी: पगड़ी वांधी है। इस प्रकार के समताभाव में तल्लीन उन मुनिको केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। . .
किराये की काया अपनको उपयोगी हो सके इसके लिये ही उसको पोषण देकर के उसके पास से आत्मा के श्रेय के लिये पूरा काम लो । इसी में मानव देह प्राप्त । करने की सफलता है।
आकाशमें से हमेशा सुवह और शामको अमुक समय तक अपकाय के जीव नीचे गिरते हैं। जिससे अपने साधु काल के समय गरम कस्वल ओढते हैं।
श्री भगवती सूत्र में कहा है कि जीव सीधे और तिरछे दोनो तरहले गिरते हैं । गिरने के साथ ही मृत्यु प्राप्त करते हैं परन्तु गरम कपडा के ऊपर गिरने से तुरन्त मरते नहीं हैं। इस लिये पोषाती श्रावक श्राविका : और साधु मुनिराज को खुले आकाश में आने के पहले चलते, वैठते और खड़े होते गरम कस्बल ओढना चाहिये। हरेक रितुमें कम्बल ओढने का काल अलग अलग होता है।
देवलोक में रहनेवाले देव सागरोपम काल पर्यन्त इन्द्रियों के विषयभोगों में मग्न होकर के रहते हैं। परन्तु जब देवलोक में से च्यवन पाने का काल नज़दीक आता है तब वे भौगिक सामग्रियों का वियोग होने वाला जान करके दुखी दुखी हो जाते हैं। शरमिन्दा होकर के वे : विचार करते हैं कि ये देवलोक के सुख छोड़ करके मानव लोक की गंधाती गटर में जाना पडेगा। ... ........: .. संसार की तमाम प्रक्रिया शास्त्रों में गुंथायेली होने