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________________ अनेकशः धन्यवाद में कि जिन्होंने अपने एक के एक पुत्र को शासन ___के लिये सोंप दिया है। . किया धर्म के हार्द को पहचान के करो । देव गुरु और धर्म को पहचानना सीखो । बाह्य क्रियाकांड में ही रहोगे तो आत्म धर्म भुला दिया जायगा । केवल वेए के पुजारी न बनो । लेकिन गुण के पुजारी बनो। - गुणों का अन्वेषण करो । मानव संयमी न बन सके तो चले, देश विरतिधर न बने तो चले लेकिन समकिती नहीं बने तो किस तरह चले ? उपरोक्त शब्द पूज्य आचार्य श्री के व्याख्यानों में हमने वारम्बार .: सुने हैं । उनको सुनने के बाद हमने तय किया कि इस भव में गुरु तो इन को ही मानना । . सदा के लिये पुज्य आचार्य देव श्री का सानिध्य मिले ऐसी - भावना दिल में जन्मती ही रहती है। - इस ग्रन्थ में कुछ जिनाज्ञा विरुद्ध लिखा गया हो, पुज्य आचार्य देवश्री के विरुद्ध लिखा गया हो अथवा प्रेस दोप हुआ तो मैं उसके बदले क्षमा मांगता है। हमारी अत्यन्त विनति से पूज्य जैन रत्त - स्व. आचार्य देवश्री भविजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराज के पट्टा लंकार धर्म दिवाकर पूज्य आचार्य दवश्री मदविजय भुवनतिलक सूरीवरजी महाराजा ने गुजराती में प्राक कथन लिख दिया था उसको साभार उधृत करके इसमें दिया है। .. इस ग्रन्थ के प्रेस मेटर सुधारने का कार्य हमारी विनंति से यह संस्था के प्रेरक, व्यवहार कुशल पूज्य मुनिराज श्री जिनचन्द्र विजयजी महाराज श्री ने अथाग परीश्रम लेकर किया है, उनका उप-- कार हम कभी भूल नहीं सकते। . - पूज्य बाल मुनिराज श्री शरदचन्द्र विजयजी महाराजने, यह ग्रन्थ . छपवाने में खूब रस लिया है, इसलीए हभ. उनका आभार मानते है ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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