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________________ व्याख्यान-सातवां चरमतीर्थपति श्रमण भगवान श्री महावीर परमात्मा 'फरमाते हैं कि संसारी क्रिया करते समय भी मनको ध्यानमें रक्खो। ___ गुणसागर जैले पुण्यात्मा परभव में सुन्दर आराधना करके ही आये थे इसी से लग्न की चोरीमें आठ सुन्दर कन्याओं के हस्त ग्रहण के समय भी उत्पन्न हुई शुभ भावना के वलसे केवलज्ञान को प्राप्त किया । इसी लिये कहा है कि-"भावना भवनाशिनी ।" धन नाशवंत है, चोर चुरा ले जायगा, राजा छुड़ा लेगा, विलासमें खर्च हो जायगा, इसलिये जितनी जल्दी. . हो सके उतनी जल्दी धर्मके क्षेत्रों में सव्यय करने लग . जाओ। मुझे ये पांचसौ रुपया खर्च करने की इच्छा नहीं । थी, परंतु महाराज साहवने कहा इसलिये अगर नहीं दें । तो अच्छा नहीं लगता है, इसलिये शरमिन्दा होकर दिये हैं । ऐसा बोलनेवाले भी वहुत हैं। इस तरह से धन. - खर्च करने वालों का धन खर्च हो जाने पर भी जितना लाभ मिलना चाहिये उतना लाभ नहीं मिलता है । कर्म आठ प्रकार के होते हैं :- (१) ज्ञानावरणीय (२) दर्शनावरणीय (३) वेदनीय (४) मोहनीय (५) आयु (६) नामकर्म (७) गोत्रकर्म (८) अंतराय ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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